Feb 18, 2016

एक पत्रकार की कथा...

मीडियाई सिद्ध हैं।

रक्त पीते गिद्ध हैं।।

दारू बोटी चलती है।

शाम शराब में ढलती है।

रोहित वेमुला दिखता है।
चैनल मेरा बिकता है।
उमर खालिद निर्दोषी है।
संघी सारे दोषी है।
कन्हैया मासूम है।
सिर्फ हमें मालूम है।
जिस पर हम ऊँगली रख दें।
जिसकी हम चुगली कर दें।
उसको तुम फांसी दे दो।
सब को तुम फांसी दो।
मेरी दारु बंद न हो।
मेरी बोटी बंद न हो।
रक्त बहे गर संघी का।
पर समय है थोडा तंगी का।
गर संघी रक्त को देखूंगा।
गर किसी भक्त को देखूंगा।
गर समाचार जो चला दिया।
उनकें कत्लो को दिखा दिया।
मेरी दारु मारी जायेगी।
मेरी बोटी मारी जायेगी।
तो मुझको हर दिन बिकने दो।
मेरे अंतरात्मा बिकने दो।
मुझे देश से कुछ ना लेना है।
मुझे देश को कुछ ना देना है।
जो मुझको पैसा दे जाए।
वो मुझसे कुछ भी ले जाए।
मैं प्राइम टाइम में बेचूंगा।
मैं पार्ट टाइम में बेचूंगा।
मेरा पाक परस्त मीडियाई धंधा।
मेरा एनजीओ से आता चन्दा।
मैं देश बेच कर खाऊंगा।
दारु के घूँट लगाऊंगा।
मैं वामपंथ झंडाबरदार।
मैं कांग्रेस का चाटुकार।
मैं आतंकी का पैरोकार।
मैं भारत का एक पत्रकार।

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